मशरूम मटर करी – डायबिटीज़ / शुगर वालों के लिए विशेष

यह रेसिपी खासतौर पर डायबिटीज़ के मरीजों के लिए बनाई गई है। इसमें हम अनाज और उच्च फाइबर सामग्री का उपयोग कर रहे हैं। मशरूम और मटर में कम कार्बोहाइड्रेट होते हैं, जो इसे डायबिटीज़ के लिए सुरक्षित बनाता है।

सामग्री:

  • 200 ग्राम मशरूम, कटे हुए
  • 100 ग्राम हरी मटर (फ्रोजन या ताजगी)
  • 1 बड़ा चम्मच तेल (सूरजमुखी या जैतून का तेल)
  • 1 मध्यम आकार का प्याज, बारीक कटा हुआ
  • 1 टमाटर, बारीक कटा हुआ
  • 1 चम्मच अदरक लहसुन का पेस्ट
  • 1/2 चम्मच हल्दी पाउडर
  • 1 चम्मच जीरा
  • 1/2 चम्मच लाल मिर्च पाउडर (स्वादानुसार)
  • 1/2 चम्मच धनिया पाउडर
  • नमक स्वादानुसार
  • हरा धनिया (सजाने के लिए)

निर्देश:

  1. सबसे पहले, मशरूम को अच्छे से धोकर काट लें। अगर आप फ्रोजन मटर का उपयोग कर रहे हैं, तो इसे पहले से हल्का सा उबाल लें।
  2. एक कढ़ाई में तेल डालकर गरम करें। जब तेल गरम हो जाए, उसमें जीरा डालें और उसे चटकने दें।
  3. अब इसमें कटा हुआ प्याज डालें। प्याज को मध्यम आंच पर गोल्डन ब्राउन होने तक भूनें।
  4. इसके बाद, इसमें अदरक-लहसुन का पेस्ट डालें और अच्छे से मिलाते हुए sauté करें।
  5. अब इसमें कटे हुए टमाटर डालें और उन्हें नरम होने तक पकने दें।
  6. इसके बाद, हल्दी, धनिया पाउडर और लाल मिर्च पाउडर डालें। सभी मसालों को अच्छे से मिलाकर 2-3 मिनट तक भूनें।
  7. अब इसमें कटे हुए मशरूम और उबले हुए मटर डालें। अच्छे से मिलाएं ताकि सब्जियां मसालों में कोटेड हो जाएं।
  8. थोड़ी मात्रा में पानी डालें (आपकी मनपसंद ग्रेवी के अनुसार) और ढककर मध्यम आंच पर 5-7 मिनट तक पकने दें।
  9. जांचें कि सब्जियां अच्छी तरह से पक गई हैं। अंत में, स्वाद के अनुसार नमक डालें।
  10. आपकी मशरूम मटर करी तैयार है। इसे गरमागरम हरा धनिया से सजाकर सर्व करें। इसे चपाती या ब्राउन राइस के साथ खा सकते हैं।

विज्ञान पर आधारित जानकारी:-

इस रेसिपी में हमने सादा रिफाइंड तेल की जगह जैतून का तेल इस्तेमाल किया है। जैतून के तेल में मोनोअनसैचुरेटेड वसा अधिक होते हैं, जो रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित रखने में मददगार होते हैं। इसके अलावा, यह हृदय स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है।

इस रेसिपी को ध्यान से पढ़ें और अपने स्वास्थ्य के अनुसार इसे बनाएं। सुनिश्चित करें कि आप अपने डॉक्टर या पोषण विशेषज्ञ से सलाह लें।

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पौष्टिक जानकारी

20

ग्लाइसेमिक इंडेक्स

3

ग्लाइसेमिक लोड

30

मैग्नीशियम

30

पोटैशियम

150

कैलोरी

10

प्रोटीन

18

कार्बोहाइड्रेट

6

फाइबर

5

वसा

सामान्य सुझाव और टिप्स

  • General Cooking Tips:
    • मशरूम और मटर को हल्का सा भूनें, इससे उनका फ्लेवर और भी बढ़ जाएगा।
    • घी या तेल की मात्रा कम रखें, और जरूरत पड़ने पर कम मात्रा में पानी का उपयोग करें।
    • करी में थोड़ा सा अदरक और लहसुन मिलाने से स्वाद बढ़ता है।
  • Diabetic-Friendly Substitutions:
    • क्रीम के बजाय दही का उपयोग करें, यह क्रीम से हल्का है और हेल्थी भी।
    • ज्यादा तला हुआ खाद्य पदार्थों से बचें, इसके बजाय भाप में पका हुआ या ग्रिल्ड विकल्प चुनें।
    • साधारण चिन्नी के बजाय स्टेविया या गुड़ का उपयोग करें।
  • Health Benefits:
    • मशरूम में बीटा-ग्लूकेन होता है, जो शुगर लेवल को नियंत्रित करने में मदद करता है।
    • मटर में फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जो पाचन को बेहतर बनाती है और ब्लड शुगर को स्थिर रखती है।
    • नमक और मसालों के संयोजन से मेटाबॉलिज्म में सुधार होता है।
  • Serving & Storage Tips:
    • एक सर्विंग के लिए 1 कटोरी से अधिक ना लें; ये कम से कम 150-200 ग्राम होनी चाहिए।
    • बाकी बचे खाने को एयरटाइट कंटेनर में फ्रिज में रखें, यह 3-4 दिन तक सुरक्षित रहेगा।
    • परोसने से पहले इसे अच्छी तरह से गर्म करें।
  • Common Mistakes to Avoid:
    • चटनी या ग्रेवी में ज्यादा तेल या घी ना डालें।
    • मसालों को जरूरत से ज्यादा नहीं डालें; इसका प्रभावयोग्य ब्लड शुगर लेवल पर पड़ेगा।
    • कच्चे मसाले या सब्जियाँ न डालें; इससे डिश का स्वाद ठीक नहीं होगा।

डायबिटीज़ (मधुमेह) एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर का इंसुलिन उत्पादन या उपयोग करने की क्षमता प्रभावित होती है, जिससे ब्लड शुगर का स्तर असामान्य रूप से बढ़ जाता है। इस स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए  पोषण संबंधी जानकारी का सही ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। पोषण से जुड़े कारकों का सीधा असर ब्लड शुगर के स्तर, इंसुलिन संवेदनशीलता और समग्र स्वास्थ्य पर पड़ता है। उचित आहार और संतुलित पोषण न केवल ब्लड शुगर को स्थिर रखते हैं, बल्कि हृदय, पाचन तंत्र और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होते हैं। आयुर्वेद में भी आहार संतुलन को रोग निवारण का प्रमुख माध्यम माना गया है, जिसमें शरीर के दोष (वात, पित्त, कफ) के अनुसार पोषण संतुलन बनाए रखने की सलाह दी जाती है।

कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates) का सेवन डायबिटीज़ में सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब हम कार्बोहाइड्रेट का सेवन करते हैं, तो शरीर इसे ग्लूकोज (शुगर) में परिवर्तित करता है, जो रक्त प्रवाह में मिलकर ऊर्जा प्रदान करता है। हालांकि, सभी कार्बोहाइड्रेट समान रूप से कार्य नहीं करते। उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI) वाले कार्बोहाइड्रेट जैसे सफेद चावल, सफेद ब्रेड और चीनी तेजी से टूटते हैं और ब्लड शुगर को अचानक बढ़ाते हैं। इसके विपरीत, कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले खाद्य पदार्थ जैसे ओट्स, बाजरा, और साबुत अनाज धीरे-धीरे टूटते हैं और ब्लड शुगर को स्थिर रखते हैं। आयुर्वेद में कहा गया है कि मधुमेह के लिए “मधुर रस” (मीठे स्वाद) का संतुलित सेवन आवश्यक है, लेकिन इसे प्राकृतिक स्रोतों जैसे फल और शहद तक सीमित रखना चाहिए।

प्रोटीन (Protein) का सेवन डायबिटीज़ रोगियों के लिए फायदेमंद होता है क्योंकि यह रक्त शर्करा के स्तर को सीधे तौर पर नहीं बढ़ाता। प्रोटीन पाचन की गति को धीमा करता है, जिससे कार्बोहाइड्रेट के अवशोषण की गति भी धीमी हो जाती है। इससे ब्लड शुगर स्तर स्थिर रहता है और इंसुलिन संवेदनशीलता बेहतर होती है। प्रोटीन के अच्छे स्रोतों में अंडा, दही, मूंग दाल, राजमा और मछली शामिल हैं। आयुर्वेद में भी प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों को “बलवर्धक” और “ऊर्जा प्रदायक” माना गया है। विशेष रूप से मूंग दाल और पनीर को सात्त्विक भोजन में रखा गया है, जो मानसिक और शारीरिक संतुलन के लिए उपयोगी होते हैं।

वसा (Fats) का प्रभाव डायबिटीज़ में प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देता, लेकिन यह शरीर की इंसुलिन संवेदनशीलता को प्रभावित करता है। असंतृप्त वसा जैसे जैतून का तेल, तिल का तेल, एवोकाडो और नट्स का सेवन शरीर के लिए फायदेमंद होता है क्योंकि ये इंसुलिन के कार्य को बेहतर बनाते हैं। ट्रांस फैट और संतृप्त वसा जैसे पैकेज्ड फूड, फ्राइड फूड और प्रोसेस्ड मीट से बचना जरूरी है क्योंकि ये इंसुलिन प्रतिरोध (Insulin Resistance) को बढ़ा सकते हैं। आयुर्वेद में तिल और नारियल के तेल को वात और पित्त को शांत करने वाला बताया गया है, जिससे शरीर में सूजन और ग्लूकोज अवशोषण की गति नियंत्रित रहती है।

फाइबर (Fiber) डायबिटीज़ के प्रबंधन में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। फाइबर युक्त भोजन पाचन को धीमा करता है, जिससे ब्लड शुगर का स्तर धीरे-धीरे बढ़ता है। घुलनशील फाइबर जैसे ओट्स, सेब, बीन्स और मसूर की दाल ब्लड शुगर को स्थिर रखने में मदद करते हैं। वहीं, अघुलनशील फाइबर जैसे ब्रोकली, गोभी और गाजर पाचन तंत्र को मजबूत बनाते हैं और कब्ज जैसी समस्याओं से राहत दिलाते हैं। आयुर्वेद में आंतों के स्वास्थ्य को “समा अग्नि” (संतुलित पाचन अग्नि) से जोड़ा गया है, और फाइबर युक्त आहार को “वात संतुलित” बताया गया है। बाजरा और रागी जैसे अनाज को पाचन अग्नि को प्रबल बनाने के लिए उत्तम माना गया है।

कैलोरी (Calories) का नियंत्रण डायबिटीज़ रोगियों के लिए महत्वपूर्ण है। अधिक कैलोरी के सेवन से मोटापा बढ़ सकता है, जिससे इंसुलिन प्रतिरोध की संभावना अधिक हो जाती है। आयुर्वेद में भी शरीर के ऊर्जा संतुलन को त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) के संतुलन से जोड़ा गया है। कम कैलोरी वाला आहार, जिसमें हरी सब्ज़ियाँ, फलियां और साबुत अनाज शामिल हों, शरीर में ऊर्जा बनाए रखता है और वजन को नियंत्रित करता है। डायबिटीज़ के रोगियों के लिए नाश्ते, दोपहर के भोजन और रात के भोजन के बीच अंतराल बनाए रखना जरूरी है ताकि शरीर को ऊर्जा मिलती रहे और ब्लड शुगर स्तर स्थिर रहे।

पोटैशियम (Potassium) और मैग्नीशियम (Magnesium) जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व भी डायबिटीज़ प्रबंधन में भूमिका निभाते हैं। पोटैशियम ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखता है और कोशिकाओं में इंसुलिन के सही उपयोग में मदद करता है। केले, शकरकंद, एवोकाडो और पालक जैसे खाद्य पदार्थ पोटैशियम के अच्छे स्रोत हैं। मैग्नीशियम मांसपेशियों के कार्य, तंत्रिका तंत्र और ब्लड शुगर नियंत्रण के लिए जरूरी है। फ्लैक्स सीड्स, कद्दू के बीज और पालक मैग्नीशियम के अच्छे स्रोत हैं। आयुर्वेद में पत्तेदार सब्ज़ियों और बीजों को “सात्त्विक आहार” के रूप में बताया गया है, जो शरीर को शुद्ध और ऊर्जावान बनाए रखते हैं।

डायबिटीज़ रोगियों के लिए भोजन का समय, मात्रा और गुणवत्ता अत्यंत महत्वपूर्ण है। आयुर्वेद के अनुसार, “अल्प मात्रा में भोजन ग्रहण करने से शरीर में वात, पित्त और कफ संतुलित रहते हैं।” प्रत्येक मील में प्रोटीन, फाइबर और स्वस्थ वसा का संतुलन ब्लड शुगर को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक है। भूख लगने पर फलों और नट्स का सेवन करना और प्रोसेस्ड फूड से बचना ब्लड शुगर नियंत्रण के लिए उपयोगी है। आयुर्वेद में अनाज, दाल, मौसमी फल और सब्ज़ियों को प्रमुखता दी गई है क्योंकि ये शरीर के संतुलन और प्राकृतिक चयापचय (Metabolism) को बनाए रखते हैं।

डायबिटीज़ के रोगियों के लिए संतुलित आहार, नियमित दिनचर्या और सही पोषण से न केवल ब्लड शुगर को नियंत्रित किया जा सकता है, बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाया जा सकता है। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से शरीर का “समा दोष” (संतुलित दोष) और “प्रकृति के अनुसार आहार” अपनाने से शरीर की इंसुलिन प्रतिक्रिया बेहतर होती है और डायबिटीज़ प्रबंधन में सहायता मिलती है।